गुरु रामदासजी का 488 वा प्रकाश पूरब आज गुरुद्वारा में होगा विशेष कीर्तन दीवान
बैतूल।(Guru Ramdasji’s 488th Prakash Purab today Special Kirtan Diwan will be held in Gurdwara)अमृतसर के संस्थापक और सिख धर्म के चौथे गुरु गुरु रामदासजी का 488 वा प्रकाश पूरब आज मंगलवार को गुरुद्वारा गुरु सिंह सभा बैतूल में श्रद्धा भावना के साथ मनाया जाएगा। गुरुद्वारा कमेटी से मिली जानकारी के अनुसार गुरुद्वारा गुरु सिंह सभा बैतूल में आज मंगलवार को सुबह 11:30 बजे से लेकर 1:15 बजे तक विशेष कीर्तन दीवान का आयोजन किया गया है। जिसमें गुरुद्वारा गुरु सिंह सभा के हजूरी रागी भाई किशन सिंह अपनी अमृतवाणी से समूह संगत को निहाल करेंगे। समाप्ति के पश्चात गुरु का लंगर दोपहर 1:30 बजे से 3 बजे तक होगा। गुरुद्वारा कमेटी ने समूह संगत से इस अवसर पर उपस्थित होकर पुण्य लाभ अर्जित करने का आग्रह किया है।
दार्शनिक अवधारणा का मूर्त रूप था गुरु रामदासजी का जीवन
जीवन की हर स्थिति में सहजता व सैद्धांतिक संकल्पों की दृढ़ता का बने रहना श्रेष्ठ अंतर अवस्था का सुफल होता है। यह अवस्था परमात्मा की भक्ति, आस्था और समर्पण से प्राप्त होती है। चौथे सिख गुरु, गुरु रामदास जी का स्वयं का जीवन इस दार्शनिक अवधारणा का मूर्त रूप था और मानवता को भी उन्होंने इसी मार्ग पर चलने को प्रेरित किया। उनका जन्म लाहौर में हुआ था, किंतु बचपन में ही माता-पिता का स्वर्गवास हो जाने के कारण वे नानी के पास बासरके गांव में आ गये, जो अब अमृतसर में है। उन्होंने मानव तन की तुलना घोड़ी से करते हुए कहा कि इस तन की सार्थकता गुरु के ज्ञान की लगाम डाल कर और प्रेम के चाबुक से हांकते हुए आवागमन से मुक्ति के लक्ष्य की ओर ले जाने में है। जैसे घोड़ी की शोभा उस पर कसी हुई जीन से होती है, वैसे ही परमात्मा का नाम ही तन की सच्ची शोभा है और चंचल मन को वश में करने का मार्ग। गुरु रामदास जी ने धर्म प्रचार के लिए योग्य सिखों को दूरस्थ स्थानों पर भेजा और गुरुवाणी की हस्तलिखित प्रतियां भी उपलब्ध कराईं। उन्होंने कहा कि अज्ञानी और माया-विकारों में मुग्ध सांसारिक मनुष्य का उद्धार परमात्मा की कृपा से प्राप्त बुद्धि और विवेक से ही संभव है।