बैतूल। (Baklol: to the point Amanbir sahib, the salary of being a collector is given to find a solution by giving the option and not to increase the confusion by making excuses! रेत की उपलब्धता का मुद्दा जनहित का मुदा है, कांग्रेस ने इसे उठाया ही इसलिए की इससे लोकहित प्रभावित हो रहा था। रेत को लेकर भास्कर, पत्रिका जैसे अखबारों से स्थिति सामने आने के बाद भी प्रशासन के सुस्त रवेये को देखकर ही मुद्दे पर प्रशासन और सत्ता पक्ष को टारगेट में लिया। इस मामले में प्रशासन पहले ही विकल्प पर फोकस करता तो भाजपा विधायक को लेकर आरोप प्रत्यारोप की नौबत ही नही आती पर कलेक्टर अममबीर सिंह ने ऐसा नही किया, उनके खनिज अधिकारी ने उन्हें विकल्प को लेकर सही राय ही नही दी इसलिए रेत का संकट एक मुद्दा बन गया। अब जब यह मुद्दा कांग्रेस के आंदोलन और मीडिया के माध्यम से आम लोगो में चर्चा का विषय बन गया तब भी प्रशासन और भाजपा विधायक विकल्प उपलब्ध करवाने की जगह हाई कोर्ट में लंबित मामले की राग अलाप रहे है । भाजपा के विधायक जिस तरह का और जिस शकुनी की सलाह से डैमेज कंट्रोल कर रहे उस से उन की और थू थू हो रही है। उन्हे भी चाहिए था कि वे भी विकल्प प्रस्तुत करने में प्रशासन को मदद कर अपनी छवि को पाक साफ रखते पर सही सलाहकार का अभाव उनके पास भी है इसलिए वे जबरन ही तथाकथित शकुनी की सलाह पर आरोपों के दलदल में कूद कर अपना ही छवि धूमिल कर रहे। खैर पूरी गलती तो खनिज अधिकारी और कलेक्टर की ही है जिन्होंने टेंडर खुलने से लेकर मामले के कोर्ट जाने तक में भयंकर हीला हवाली वाला तरीका अपनाया। शायद यह सोचा की बैतूल है यहां कौन सवाल करेगा , किसको पड़ी है , जो चुने हुए नुमाइंदे है वे तो प्रशासन के गुड फेथ वाले और पेट भरा होने का दावा करने के बाद भी कथड़ी ओढ़कर घी पीने के मानसिकता रखते है। कलेक्टर हाई कोर्ट मे मामले के लंबित होने की आड़ ले रहे है तो उन्हे यह भी बताना चाहिए की क्या कोर्ट में रेत खनन को लेकर विवाद लंबित है या टेंडर प्रक्रिया में हुए गड़बड़ झाले को लेकर विवाद का मामला चल रहा ? जब खनन को लेकर विवाद नही तो विकल्प में कहा दिक्कत है ? सब कुछ तो कलेक्टर और खनिज विभाग के ही हाथ में है। बिना ठेके के खनन का लीगल तरीका भी अधिनियम में दिया है परिवहन का पिट पास जारी करने का अधिकार भी देने का पावर भी मिला हुआ है। ऐसे में विकल्प देने में कहा दिक्कत है यह कलेक्टर स्पष्ट करे तो माइनिंग के अच्छे जानकारों से उनको प्रमाणित मुफ्त सलाह दिलवाकर कम से कम उनका ज्ञान वर्धन करवा ही सकते है। कोर्ट कचहरी का हवाला देकर अपनी जिम्मेदारी से भागना प्रशासन बंद करे और विकल्प प्रस्तुत करे। प्रशासन ऐसा नही करेगा तो लोकहित की खिलाफत ही नही होगी बल्कि शासन को होने वाले राजस्व के नुकसान की जबाबडेही भी सीधे तौर पर कलेक्टर की होगी वही अवैध खनन करने वाले माफिया का अघोषित समर्थन भी माना जाएगा।